एक मित्र मिले, बोले, लाला तुम किस चक्की का आटा खाते हो,
इस डेड छटा क राशन से तुम, तुम तोंद बढ़ाये जाते हो|
क्या रखा मास बढ़ाने मे, मनहूस अकाल से कम लिया करो,
सक्रांति काल की बेला है, मर मिटो जगत मैं नाम करो|
हम बोले, रहने दो लेक्टुर, पुरषों को मत बदनाम करो,
इस दौड़-धुप मैं क्या रखा है, आराम करो, आराम करो, आराम करो|
आराम शब्द मैं राम छुपा है, जो बहु बंधन को खोता है,
आराम शब्द का ज्ञाता तोह, विरला ही योगी होता है|
यदि करना ही कुछ पड़ जाये तो, अधिक उत्पात तुम न किया करो,
बस घर बैठे-बैठे, लम्बी-लम्बी बात किया करो|
जो होठ हिलाने मैं रस है, वो कभी ना हाथ चलाने मे,
तुम मुझसे पूछो, बतलऊँ मैं, मज़ा मुर्ख कहलाने मे|
जीवन जाग्रति मे क्या रखा है, जो रखा है सो जाने मे|
इसलिए पास अकाल के कम ही जाया करता हूँ,
जो बुद्ध्हिमान जन होते है उनसे कतराया करता हूँ|
दिया जलने से पहले घर आ जाया करता हूँ,
जो मिलता है खा लेता हूँ, चुपके से सो जाया करता हूँ|
अदवायन खिची खाट पर, जो पड़ते ही आनंद आता है,
वो सात स्वर्ग, अपवर्ग की मौज से भी उप्पर उठा जाया करता है|
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करने लगती है,
भावो का रस हो जाता है, कवितायेँ सब उमड़ पड़ती है|
मैं तोह खटरागी हूँ, मुझे तोह खटिया मैं गीत फूटते है,
छतो की कडिया गिनते-गिनते, छंदों के बंद टूटते है|
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊंटों की उपमा देता हूँ,
इसलिए तुम्हे समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो,
ये खाट बिछालो आँगन मे, लेटो बैठो आराम करो
आराम करो, आराम करो|
Sunday, March 13, 2011
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mere jaise super aalsiyo k liye bahot hi INSPIRING poem thi....thanks bhai
ReplyDeletehan specially tujhey hi dhyan me rakh k likhi thi :)
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