एक दिन बोली मुझसे नानी
मै कहती तुम सुनो कहानी
एक खेत बिन जुता पड़ा था
उबड़ खाबड़ बहुत बड़ा था
कोई चिड़िया बीज उठा के
उडती-उडती गयी डाल पे
हवा डरती धुप जलती
मिटटी उसको खूब दबाती
मिटटी की गोदी में रहकर
सूरज की किरणों में जलकर
कहूं बीज मै हाय अकेला
पर न डरूंगा भले अकेला
कुछ दिन बीते अंकुर फूटे
कोमल-कोमल पत्ते फूटे
बीज बन गया पोधा प्यारा
पोधे से बाद पेड़ कहलाया
दूर-दूर तक फैली छाया
जितने भी बड़े बने छोटे से बड़े बने
Thursday, April 15, 2010
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