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Thursday, April 15, 2010

छोटे से बड़े

एक दिन बोली मुझसे नानी
मै कहती तुम सुनो कहानी

एक खेत बिन जुता पड़ा था
उबड़ खाबड़ बहुत बड़ा था

कोई चिड़िया बीज उठा के
उडती-उडती गयी डाल पे

हवा डरती धुप जलती
मिटटी उसको खूब दबाती

मिटटी की गोदी में रहकर
सूरज की किरणों में जलकर

कहूं बीज मै हाय अकेला
पर न डरूंगा भले अकेला

कुछ दिन बीते अंकुर फूटे
कोमल-कोमल पत्ते फूटे

बीज बन गया पोधा प्यारा
पोधे से बाद पेड़ कहलाया
दूर-दूर तक फैली छाया

जितने भी बड़े बने छोटे से बड़े बने

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